Sunday, October 18, 2015

उदारवाद के चोले में छिपे वामपंथ द्वारा आस्था पर प्रहार

आज एक उदारवादी मुस्लिम बन्धु का लिखा एक लेख देखा, जिसमें लिखा था की"एक गुरूजी बच्चों को राम की महिमा पढ़ा रहे थे, अचानक एक बच्चा राम की तुलना गाँधी से कर बैठा,जिसे सुनकर गुरूजी भड़क गए, और गाँधी की तुलना राम से न करने को कहा व् गाँधी कि आलोचना की"जिसमें आगे उन गुरूजी पर कई व्यंग्य व् आलोचनात्मक टिप्पणी की गयी थी,

यह लेख एक कटाक्ष का प्रयास था उन लोगों पर जो गाँधी की नीतियों आचरण व् कृत्यों से असहमत है, विशेषकर उन राष्ट्रवादियों पर जो गांधी को भारत की दुर्दशा के लिए उत्तरदायी मानते आये हैं,  इन मुस्लिम बन्धु ने गाँधी को राम के तुल्य भी बता दिया, व् कई "उदारवादी" उनके मित्र(चाटुकार) उनकी इस पोस्ट की जय जयकार करने लगे.....

आइये अब दोनों के चरित्रों की तुलना कर ही ली जाए
  • आरम्भ चौरीचौरा से करते हैं, जब गांधी के आव्हान पर उनके समर्थन में हजारों बच्चों, युवाओं, व् लोगों ने   अपने स्कूल, कॉलेज व्  नौकरियां छोड़कर आन्दोलन में जुड़ने का निर्णय लिया, किन्तु एक छोटी हिंसा की घटना पर गाँधी ने आन्दोलन वापस ले लिया, ब्रिटिश सरकार ने उन लोगों को दोबारा स्कूल,कॉलेज व् कार्यालय में घुसने नहीं दिया, हजारों लोगों व् उनके साथ उनके परिवारों का जीवन व् भविष्य गांधी के मूर्खतापूर्ण निर्णय की भेंट चढ़ गया, ऐसा कोई उदाहरण राम के चरित्र में नहीं मिलता ।
  • सुभाषचंद्र बोस के प्रति गाँधी का इतना गहरा वैमनस्य था की उन्हें त्रस्त कर कांग्रेस अध्यक्ष के पद से त्यागपत्र देने को बाध्य कर अपनी प्रिय नेहरु के मार्ग को सुगम कर देना, ऐसा भी कोई उदाहरण राम के चरित्र में नहीं दीखता ।
  • नोआखाली में हिन्दुओं का मुस्लिमों के द्वारा नरसंहार किये जाने पर हिन्दुओं को अपने प्राणों के रक्षार्थ प्रतिकार न करने व् सहर्ष मुस्लिमों के हाथों म्रत्यु का वरण करने की सीख देने वाली घटना जिसकी पूरे विश्व में उस समय निंदा हुई थी, जैसा उदाहरण भी राम के जीवन चरित्र में नहीं मिलता, राम ने तो अन्याय सहन न करने व् प्रतिकार करने का सन्देश दिया था ।
  •  नेहरु व् जिन्नाह की महत्वकांक्षा किसी से छिपी नहीं है, किन्तु पूरी कांग्रेस जब राष्ट्र के विभाजन के विरुद्ध थी, तो स्वयं चलती चर्चा के बीच में आकर कांग्रेस से अपने प्रिय नेहरु के लिए राष्ट्र के विभाजन के प्रस्ताव का समर्थन करवाने जैसा अक्षम्य कृत्य भी राम के चरित्र में कहीं नहीं दिखता।
  • गांधी द्वारा नेहरु को कांग्रेस वर्किंग कमेटी के चुनाव में मात्र एक वोट व् सरदार पटेल को १४ वोट मिलने के पश्चात भी, अपने प्रिय नेहरु को प्रधानमन्त्री बनवाने हेतु सरदार पटेल के साथ किया गया घोर अन्याय क्या भला कोई कभी भूल सकता है ? जब गांधी ने सत्य, न्याय व् नैतिकता को ताक पे रखकर सरदार पटेल से नेहरु के लिए कांग्रेस अध्यक्ष का पद त्यागने को कहा था, ऐसा कोई अन्याय आपको राम के चरित्र में तो नहीं दिखेगा ।
  •  विभाजन का आधार धर्म था, जिन्नाह ने आबादी की अदला-बदली का प्रस्ताव रखा था, किन्तु स्वयं को महान दिखाने की होड़ में उस प्रस्ताव को गांधी द्वारा ठुकरा दिया गया, ध्यान देने योग्य ये है कि, मुस्लिमों का आजादी की लड़ाई में जो भी योगदान रहा उसका मूल्य तो उन लोगों ने अपने लिए अलग देश लेकर ब्याज समेत वसूल ही लिया न, फिर अब हिन्दुओं के लिए मिले देश में उनका क्या अधिकार ? जब धर्म आधारित विभाजन हुआ तो मुस्लिमों को इस्लामिक मुल्क पाकिस्तान मिला, किन्तु हिन्दुओं को हिन्दू राष्ट्र क्यों नहीं मिला, आज देश भर में साम्प्रदायिक झगड़े व् हिंसा का बीज गांधी ने ही तो बोया था, इतना अव्यवारिक व् अतार्किक निर्णय राम के चरित्र में कहीं दिखता है क्या ?
  • गाँधी के ऐसे भी कई निर्णय देखे गए जिसमें उन्होंने हिन्दुओं के हितों की बली चढ़ाकर कर अपने को महान दिखाने हेतु हिन्दुओं के हितों का दमन करते हुए अनैतिक रूप से  मुस्लिमों का पक्ष लिया, जैसे विभाजन के बाद आर्थिक संकट से जूझ रहे भारत से पकिस्तान को अपने "सत्याग्रह" के ब्लैकमेल द्वारा बड़ी धनराशी दिलवाना, वो भी तब जब पाकिस्तान से ट्रेनों में भर भरकर हिन्दुओं के शव आ रहे थे, 
  • विभाजन के समय जब भारी बारिश में पाकिस्तान से आये भूखे, निर्धन असहाय बिना आश्रय के हिन्दुओं को जो एक मस्जिद में शरण लिए हुए थे उन्हें मुस्लिमों के विरोध पर उनके छोटे बच्चों समेत बारिश में पुलिस से डंडे मरवाकर गांधी के अपने "सत्याग्रह" द्वारा बाहर निकलवाना भला कौन भूल सकता है,  व् उस समय के पश्चिमी पाकिस्तान को पूर्वी पाकिस्तान से जोड़ने के लिए जिन्नाह द्वारा मांगे गए ५ किलोमीटर चौड़े सडक मार्ग जिसके आस पास हिन्दू न बसते हों, उसके लिए भी गांधी सहमत हो ही गए थे, अब इस प्रकार के उदाहरण राम के चरित्र में तो नहीं मिलते। 
  • यह तो हुई सामाजिक आचरण की बात किन्तु यदि निजी जीवन की बात करें तो कई गांधीवादियों के मस्तक लज्जा से झुके दिखेंगे जैसे अपनी पोती 17 वर्षीय बालिका मनुबेन के साथ गाँधी के ब्रह्मचर्य के प्रयोग, अपनी पुत्री की आयु की रबिन्द्रनाथ टैगोरे की भतीजी पर असक्त होकर विवाह का प्रस्ताव रख देना, कुछ किस्से तो यहाँ तक हैं की विवाहित गाँधी के दक्षिण अफ्रीका के एक पुरुष बौडीबिल्डर हेरमन केलेनबक के साथ गाँधी के अन्तरंग सम्बन्ध थे, अब ऐसे व्यक्ति की तुलना किसी राम जैसे व्यक्तित्व से करना क्या कहा जाय इसका निर्णय पाठक ही करें। 

 आजकल कुछ मुस्लिम बंधु उदारवाद का चोगा ओढ़कर तथ्यों व् साक्ष्यों को छिपाकर व् तोड़ मरोड़कर न केवल लोगों को भ्रमित करते हैं, अपितु अपने वामपंथ की विचारधारा को भी उनके ऊपर थोप देते हैं, और अधिकांश लोग उनकी उदारवाद की छवि से प्रभावित होकर उनका लिखा सब कुछ सत्य मानकर स्वीकार कर लेते हैं, यही हमारे समाज की विडम्बना है की बिना अध्यन किये, इतिहास पढ़े, लोग हर किसी प्रसिद्द व्यक्ति के कथनों पर आँख बंद कर विशवास कर लेते हैं, जिसका दुष्परिणाम न केवल उनको अपितु समाज को भी भुगतना पड़ता है।              

Saturday, October 10, 2015

ISIS अमेरिका, रूस व् तेल

हममे से बहोत से लोग सीरिया में ISIS पर चल रहे रूसी हमलों के विषय में पूर्ण तथ्यों से अनभिज्ञ हैं, तो चलिए आज इसी विषय को समझने का प्रयास करते हैं,

सर्वप्रथम ISIS को समझते है, सद्दाम हुसैन के बाद ईराक में परिस्थितियां
को सम्भालने के लिए अमेरिका ने कुछ बेरोजगार कट्टरपंथी लड़ाकों को हथियार व् धन उपलब्ध कराया, धन व् शक्ति के नाम पर और लोग उनसे जुड़ते गए अब संगठन बढ़ गया व् धन की आवश्यकता भी बढ़ चुकी थी, 
शक्ति व् आधिपत्य की भूख भी बढ़ती जा रही थी अतः नए स्थानों की ओर ध्यान दिया गया व्  लोगों पर अत्याचार कर अपना भय व्याप्त किया गया, महिलाओं व् नशीली दवाओ की  तस्करी आरम्भ की गयी, अमेरिका जो बारीकी से  परिस्थितियां देख रहा था उसने इन लड़ाकों को तेल के कुओं पर कब्जा करने का सुझाव दे डाला जिससे की उसे अब इन लड़ाकों को कम धन देना पड़े, 
जब कुछ तेल के कुओं पर कब्जा हो गया तो इन लोगों ने अंतरराष्ट्रीय दामों से कम पर अमेरिका व् उसके सहयोगियों को तेल बेचना आरम्भ किया, अब इन लड़ाकों की महत्वकांक्षाएं बढ़ चुकी थी और ये अपने लिए एक देश का निर्माण करना चाहते थे जहाँ इनकी सत्ता हो और जो इस्लामिक कानून शरीयत के अनुसार चले,

अतः अब इन लड़ाकों ने कमजोर बशर अल असद के शासन वाले सीरिया की ओर रुख किया जिसके पास बड़े तेल भण्डार थे वही तेल जो सीरिया की आय का प्रमुख स्रोत था,
अब इन लड़ाकों ने सीरिया पर कब्जा करने का व् एक इस्लामिक स्टेट बनाने का स्वप्न देखना आरम्भ किया जिसका अर्थ था अधिक बड़ा राज्य व् कहीं अधिक धन, धीरे-धीरे इन लड़ाकों ने इराक व् सीरिया के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया व् नशीली दवाओं, महिलाओं की तस्करी व् अमेरिका और उसके सहयोगियों को तेल बेचकर अपने को आर्थिक रूप से सुदृढ़ कर लिया, अमेरिका व् ISIS के इस छुपे गठबंधन से अमेरिका,उसके सहयोगियो व् ISIS, तीनों को परस्पर लाभ मिल रहा था, एक पक्ष को धन व् शक्ति व् दुसरे को सस्ता तेल,
किन्तु इसका परिणाम ये हुआ की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की मांग कम हो गयी, क्योंकि बहोत से देशों को अब सस्ता तेल मिल रहा था तो उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय बाजार से तेल खरीदना बहोत कम कर दिया, जब तेल की मांग गिरी तो अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम भी गिर गए।

अब सब कुछ ISIS,अमेरिका व् उसके सहयोगियों के हित में चल रहा था,किंतु ISIS के इस्लामिक कट्टरपंथ व् अत्याचारों ने मिडिया में सुर्खियां बटोरनी आरम्भ कर दी थी, जिससे विश्व की जनता में ISIS की छवि बिगड़ती गयी अब अमेरिका को दिखाने के लिए ही सही परन्तु इनके विरोध में उतारना पड़ा, किन्तु सोने का अंडा व् सस्ता तेल देने वाले को कौन मारता है.....अतः यह विरोध मात्र एक औपचारिकता बनकर रह गया, और सबकुछ पुनः पूर्व के जैसे चलने लगा, नित नई विभीत्स, हिंसक व् पैशाचिक कृत्यों के समाचार सुर्ख़ियों में आते रहे, विश्व को अपनी गम्भीरता प्रदर्शित करने के लिए कभी कभी एक दो ड्रोन भेजकर एक दो मिसाइल लौंच कर वैश्विक महाशक्तियों ने अपने दायित्व की इतिश्री कर ली ।

अब रूस की बात करते हैं, यदि आप समझ रहे हैं की ISIS पर रूस के इन आक्रमण का उद्देश्य मात्र मानवता की रक्षा व् सेवा है तो आप गलत है, रूस भले ही ISIS को समाप्त कर मानवता का भला ही कर रहा हो, किन्तु वो अपना भी हित साध रहा है,
आप पूछेंगे कैसे ? तो आपको बता दें की रूस की आय का मुख्य स्रोत हथियार व् तेल बेचकर आने वाली आय है, किन्तु आजकल रूसी हथियारों की मांग कम होना, अमेरिका द्वारा कई प्रकार के आर्थिक प्रतिबंध लगाने व् तेल के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार में कम होने से व् रूसी मुद्रा के 44% टूटने के फलस्वरूप रूस एक आर्थिक कठिनाई से जूझ रहा हैं व् तब तक जूझता रहेगा जब तक अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में तेल के दाम बढ़ नहीं जाते, 
और उसके लिए ISIS द्वारा चलाये जा रहे तेल के इस ग्रे मार्किट का बन्द होना रूस के लिए अति आवश्यक है,

इसीलिए जब बशर अल असद ने वलादमीर पुतिन को दोनों देशों के पुराने पारस्परिक सम्बंधों का हवाला देते हुए अपना राज्य व् शासन बचाने के लिए सैन्य कार्यवाही का आग्रह किया तो पुतिन तुरन्त तैयार हो गए
क्योंकि एक ओर रूस चेचन मुस्लिम आतंकी जो ISIS के लिए लड़ रहे थे उनसे निपट सकता था, वहीँ तेल का ग्रे मार्केट नष्ट कर अतन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में तेल की कीमत पुनः वहीं लाकर अपने को आर्थिक संकट से उबार सकता था, अमेरिका को दोहरा सबक सिखा सकता था, क्योंकि अमेरिका सुपर पावर है और उसके होते हुए विश्व के सामने ISIS का सफाया कर रूस का नायक के रूप में उभारना, रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने वाले अमेरिका व् उसके सहयोगियों को मिल रहे सस्ते तेल का मार्ग बन्द कर अपना प्रतिशोध भी ले लेना इससे अच्छा अवसर रूस को नहीं मिल सकता था,

अतः रूस ने आक्रमण के पहले दिन ही अपने इरादे स्पष्ट कर दिए थे की वो गम्भीरता से युद्ध लड़ने उतरा है Su 27 व् Su 34 ने ताबड़तोड़ हमले करने आरम्भ किये, आक्रमण की तीक्ष्णता का का अनुमान इसी से लगा लीजिये की 24 घण्टों में लड़ाकू विमानों ने 67 सॉर्टिस को अंजाम दिया व् कैस्पियन सी से भी क्रूज़ मिसाइलों द्वारा ISIS पर  आक्रमण कर उसकी कमर तोड़ दी व् आतंकी लड़ाके भागने लगे, अमेरिका ने अंतर्राष्ट्रीय मिडिया द्वारा रूस के विरुद्ध प्रोपगैंडा चलाने का प्रयास किया किंतु व् निरर्थक ही रहा, उल्टा अब ईराक ने भी रूस को ISIS से लड़ने के लिए अपने देश में आमंत्रित किया है व् रूस को कार्यवाही करने के लिए एक सैन्य बेस व् हवाई अड्डा देने का निर्णय लिया है, जिससे विश्व पटल पर अमेरिका की छवि को गहरा धक्का लगा है वहीं रूस एक सशक्त जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में उभरा है।

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