Tuesday, December 22, 2015

अरविन्द केजरीवाल भरष्टाचार से ऐसे लड़ते हैं

आज ट्विटर पर प्रमुख ट्रेंड चल रहा है #OnlyKejriwalFightsCorruption किन्तु पूर्व में घटित हुई घटनाएं कुछ विपरीत कथा कहती हैं, आज मैं आपका ध्यान उन घटनाओं व् तथ्यों की ओर आकर्षित करूँगा,

सर्वप्रथम 21 जनवरी 2014 की बात करते हैं जब श्री केजरीवाल ने 26 जनवरी की परेड न होने देने की धमकी दी थी व् स्वयं को अराजकतावादी घोषित किया था, वह भी इसलिए की उन्हें अपने कानून मंत्री सोमनाथ भारती को बचाना था जो की महिलाओं से अभद्रता, दुर्व्यवहार, स्पैमिंग व् पोर्न साइट्स वेबमास्टर के रूप में कुख्यात है, क्या अपराधी का बचाव करना व् राष्ट्रिय पर्व में व्यवधान डालने की चेष्टा भ्रष्टाचार की श्रेणी में नहीं आता ?

केजरीवाल अपने को अराजकतावादी घोषित करते हुए 
केजरीवाल ने दी गणतंत्र दिवस परेड रुकवाने की धमकी 
  
 


अरविन्द केजरीवाल ने अन्ना हजारे के जनलोकपाल आन्दोलन के समय मंच पर खड़े होकर लालू यादव को भ्रष्ट घोषित किया था, आगे चलकर लालू भारतीय राजनीती के पहले नेता बने जिन्हें कोर्ट ने भ्रष्टाचार के आरोप सिद्ध होने पर उनकी लोकसभा सदस्यता रद्द की, अर्थात वो कोर्ट द्वारा प्रमाणित व् सत्यापित भ्रष्ट व्यक्ति है, किन्तु स्वघोषित इमानदार केजरीवाल जो पहले लालू को भ्रष्ट कह रहे थे, वही राजनितिक लाभ के लिए न केवल लालू का बिहार चुनाव में समर्थन कर रहे थे, अपितु चुनाव परिणाम आने के पश्चात सार्वजनिक रूप से मंच पर लालू यादव से गलबहियां करते भी पाए गए थे,  अब केजरीवाल के सिद्धांतों नीतियों व् आदर्श के विषय में क्या यह कहना अनुचित होगा की राजनितिक लाभ के लिए केजरीवाल आदर्शों व् सिद्धांतों का त्याग कभी भी कर सकते हैं, या फिर ये भी कहा जा सकता है की केजरीवाल इमानदार व् आदर्शवादी होने का केवल पाखंड करते हैं जनता का विशवास प्राप्त करने हेतु, 
केजरीवाल व् लालू की गलबहियां

   

आपको याद होगा जिस दिन राजेन्द्र कुमार पर CBI का छापा पड़ा था उस दिन केजरीवाल ने कहा था की यदि मेरे बेटे के ऊपर भी भ्रष्टाचार का आरोप हुआ तो उसे भी छोडूंगा नहीं, अब इस समाचार पर ध्यान दीजिये जो केजरीवाल के पिता पर छापा था, क्या कभी केजरीवाल ने इस विषय पर एक भी शब्द कहा ? यदि नहीं, तो क्या हम समझें की उनकी बातें निरर्थक है व् उनका सत्य से कोई लेना देना नहीं है
 केजरीवाल के पिता ने बहन को मां बताकर हड़प ली जमीन


 हम सबको स्मृत है की केजरीवाल पहले कहते थे की उनको राजनीती में नहीं आना व् उनका कोई राजनितिक उद्देश्य नहीं है, किन्तु वे आये जो की उनका अधिकार है, किन्तु जनता को कुछ आश्वासन देना फिर उसपर अडिग न रहना कितना नैतिक है यह मैं नहीं जनता,
केजरीवाल कहते थे की हमें सरकारी सुरक्षा, सरकारी बंगले, सरकारी गाडी, वेतन व् भत्ते नहीं चाहिए किन्तु अब इन घटित हुई घटनाओं को देखिये
केजरीवाल ने मुख्यमंत्री बनते ही की दो बंगलों की मांग

विचार करिए जो आदमी जनता के सामने पहले कहता फिरता था की हमें कुछ नहीं चाहिए हम केवल राष्ट्र की सेवा व् भ्रष्टाचार से लड़ने आये हैं उसने मुख्यमंत्री बनते ही एक नहीं बल्कि दो बंगलों की मांग कर डाली, आखिर ऐसा हृदय परिवर्तन कैसा हो गया ? और यदि नहीं हुआ तो इसका अर्थ है की राजनितिक हित साधने हेतु जनता से झूठ बोलकर उसे मूर्ख बनाया व् वोट हथिया लिया,

केजरीवाल ने अपना व् विधायकों का वेतन 400% बढाया 

आज की परिस्थिति ये है की केजरीवाल व् दिल्ली के विधायकों का वेतन लोकसभा के सांसद यहाँ तक की प्रधानमन्त्री के वेतन से भी अधिक है, यहाँ ध्यान देने योग्य बात ये है की पूरे भारत में सबसे अधिक वेतन लेने वाले विधायक व् मंत्री दिल्ली के हैं, जो की एक पूर्ण राज्य तक नहीं है, क्या जनता के धन की अपनी मर्जी से बन्दरबांट करना भ्रष्टाचार की श्रेणी में नहीं आता ?
 क्या केजरीवाल ने उत्तर दिया की जो व्यक्ति मात्र समाजसेवा के नाम परमुख्यमंत्री बना था, उसके मन में इतनी लालच अचानक कैसे आ गयी की उसे अपना वेतन व् भत्ते 400% बढ़ाना पड़ा, या फिर वो भी उन्ही लोगों में से एक निकला जिन्हें कोसकर,गलियां देकर वो मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा था,

केजरीवाल ने अब तक असंख्य लोगों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये हैं किन्तु आजतक किसी के विरुद्ध कोई साक्ष्य या प्रमाण नहीं प्रस्तुत किया, कभी शीला दीक्षित के विरुद्ध 370 पन्नों के सबूतों की बात करने वाले केजरीवाल उन्हें बाद में ईमानदार घोषित करते भी पाए गए, नितिन गडकरी पर भी ऐसे ही आरोप लगाये थे, परिणामस्वरूप गडकरी इन्हें कोर्ट ले गए जहाँ केजरीवाल कोर्ट के सामने कोई प्रमाण या साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर पाए,  इन्हें जेल भी जाना पड़ा, व् अंत में इन्हे नितिन गडकरी से क्षमा मांगनी पड़ी,

किन्तु ध्यान देने योग्य बात ये है की दूसरों पर अनर्गल आरोप लगाने वाला स्वयं भ्रष्टाचार के कई गम्भीर आरोपों से घिरा हुआ है, जैसे की प्याज खरीद घोटाला जिसमे केजरीवाल ने 18 रूपये/किलो प्याज खरीदा किन्तु दिल्ली वालों को वही प्याज 30 रूपये/किलो बेचा गया,

केजरीवाल ने दिल्लीवासियों को 18 रूपये का प्याज 30 रूपये का बेचा

यह अकेली घटना नहीं है, प्याज घोटाले के बाद केजरीवाल ने चीनी घोटाला भी किया जिसमे केंद्र सरकार से 90 प्रतिशत सब्सिडी लेकर दो कम्पनियों से 101000 क्विंटल चीनी खरीदी गयी जिनके मालिक केजरीवाल के करीबी बताये जा रहे हैं, चीनी 34 रूपये/किलो के हिसाब से खरीदी गयी, जबकि उसी समय दिल्ली में चीनी का थोक भाव 19 रूपये/किलो था,

केजरीवाल पर और भी घोटालों के आरोप हैं जिनमे से एक है 526 करोड़ का एड घोटाला जिसमें जनता के 526 करोड़ रूपये केजरीवाल ने अपना व् अपनी पार्टी का प्रचार करने में खर्च किये, रोचक बात ये हैं की सारे ठेके जिस कम्पनी को दिए गए उस कम्पनी का मालिक कोइ और नहीं दिल्ली के उपमुख्यमंत्री, केजरीवाल के करीबी मनीष सिसोदिया का रिश्तेदार है,इस प्रकार पद का दुरूपयोग कर जनता के धन की लूट का ये एक अनूठा मामला है  

केजरीवाल का 526 करोड़ का एड घोटाला, ठेके दिए सिसोदिया के रिश्तेदार को


इनके अलावा और भी कई वित्तीय गड़बड़ियां की हैं केजरीवाल ने, जिसमें अपनी करीबी स्वाति मालीवाल को DCW का अध्यक्ष बना दिया गया जबकि उनके पास न तो इस विषय में कोई अनुभव है न ही इस पद लिये योग्यता ही है, उसी प्रकार हर आम आदमी पार्टी के विधायक व् मंत्री को जो सहयोगी व् ड्राइवर उपलब्ध करवाए गये हैं वे आम आदमी पार्टी के कार्यकर्त्ता हैं जिन्हें नियमों को किनारे रखकर नौकरी दे दी गयी है, उनमे से 80% के पास तो स्नातक की डिग्री तक नहीं है व् 45% ड्राइवरों के पास ड्राइविंग लाइसेंस तक नहीं है, यह है स्वघोषित केजरीवाल के राज्य में चल रही जनता के धन की बंदरबाँट.

केजरीवाल ने अपनी करीबी स्वाति मालीवाल को बनाया DCW का अध्यक्ष





ये वे घटनाएं है जो पब्लिक डोमेन में आ चुकी हैं व् कई ऐसी भी होंगी जो अबतक बाहर नहीं आ पाई, अभी सबसे नया मामला केजरीवाल द्वारा प्रधानमन्त्री के प्रति अमर्यादित टिप्पड़ी व् अरुण जेटली पर निराधार आरोप लगाने का है, जो केजरीवाल द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे राजेन्द्र कुमार को बचाने का हथकंडा है,  
क्योंकि यदि केजरीवाल के पास जेटली के विरुद्ध कोई भी साक्ष्य है तो कोर्ट में केस क्यों नहीं दायर करते ? 
ये मिडिया के माध्यम से शाब्दिक युद्ध क्यों ?

यदि ध्यान दिया जाए तो आप पाएंगे की केजरीवाल की नीति स्पष्ट हैं, स्वयं पर लगे आरोपों से जनता का ध्यान हटाने के लिए एक छद्म युद्ध आरम्भ कर दो, व् अपने से बड़े किसी भी पद प्रतिष्ठा वाले व्यक्ति पर इतने संगीन व् ढेर सारे झूठे आरोप लगाओ की मिडिया व् जनता का ध्यान उसी ओर केन्द्रित रहे, यह वही सिद्धांत है की यदि एक झूट को हजार बार, हजार जगह बोला जाय, तो लोग उसे सच मान लेते हैं, किन्तु इस प्रकार की निकृष्ट राजनीती न केवल समाज के लिए घातक है अपितु भविष्य की राजनीती के स्तर के लिए भी ठीक नहीं  



Friday, November 20, 2015

भाजपा सरकार में केवल "बयानबाजी" या विकास (केवल आंकड़े व् तथ्य)

प्रत्येक समाचार चैनल पे बड़े बड़े राजनेता, बुद्धिजीवी व् एंकर आजकल जनता को जटिल तर्कों द्वारा यह विश्वास दिला रहे हैं की नयी भाजपा सरकार के शासनकाल में कोई विकास कार्य नहीं हुआ, हम क्योंकि इन महानुभावों के जैसे समृद्ध पृष्ठभूमि से नहीं आते, कभी विदेश जाकर ओक्स्फोर्ड, ट्रिनिटी व् कैम्ब्रिज जैसे विश्विद्यालय में पढने का सौभाग्य नहीं प्राप्त हुआ, किन्तु सामान्य ज्ञान अवश्य है व् इतनी जागरूकता है की देश में घटित हो रही घटनाओं को समझ सकें, अतः बिना तर्कों पे पढ़े कुछ आंकड़े व् घटनाएं जो मिडिया द्वारा ही छापे गए थे उन्हें प्रस्तुत कर रहा हूँ, व् अंतिम निर्णय पाठकों पर छोड़ रहा हूँ,


पिछले 9 वर्षों से कांग्रेस नीतियों के कारण घाटे में चल रही एयर इंडिया इस वित्त वर्ष मुनाफा दिखा रही है व् लोग बोलते हैं केवल हवाई बातें हो रही हैं

BSNL जिसने अंतिम बार मुनाफे का मूह 2007 में देखा था वो 672 करोड़ का ऑपरेटिंग मुनाफा दिखा रहा है, किन्तु लोग बोलते हैं केवल भाषणबाजी हो रही है

सरकार वित्तीय घाटे को कम करने में सफल रहती है, व् पूर्वानुमान से भी अच्छे परिणाम दिखाती हैं किन्तु लोगों को कोई अंतर समझ नहीं आता

सरकार फोरेक्स रिसर्व भंडार को रिकॉर्ड सीमा तक बढ़ा लेती है, किन्तु लोगों को कुछ काम समझ नहीं आता

गोल्डमैन सैक्स भारत की विकास दर 8% तक अनुमानित करती है, किन्तु लोगों को वह भी कोई उपलब्धि नहीं लगती

भारत सरकार अमेरिका व् चीन से भी अधिक विदेशी निवेश ले आती है किन्तु, यह उपलब्धि भी लोगों के लिए महत्वपूर्ण नहीं

पहली बार भारत में भ्रष्टाचार कम होता है, व् वैश्विक सूचकांक में भारत चीन को पछाड़ देता है, किन्तु यह भी लोगों का ध्यान आकर्षित नहीं कर पाता

पूरा विश्व निवेश के लिए भारत को सर्वोत्तम स्थान स्वीकार करता है, किन्तु लोगों को इसमें भी कोई बड़ी बात नहीं दिखती

भारत के औद्योगिक उत्पादन की दर 6.4% बढ़ जाती है, किन्तु लोगो को उससे कोई मतलब नहीं

सरकार खुदरा महंगाई निरंतर कम करने में सफल रहती है, किन्तु लोग पिछली सरकारों के आंकड़े व् ब्यान भूलकर सरकार को महंगाई के लिए दोष देने में लगे हैं

भारत सरकार जनधन योजना में 11.5 करोड़ खाते खोलवाकर नया विश्व इतिहास रच देती है किन्तु वह भी, लोगों के लिए कोई उपलब्धि नहीं है,

भारत सरकार एक वर्ष में 89 लाख शौचालय बनवाकर स्वच्छ भारत मिशन को आगे बढ़ाती है, व् हर स्कूल में बालिकाओं के लिए अलग शौचालय बनवा देती है, जो इतने कम समय में किया गया अति दुष्कर कार्य है, किन्तु लोगों के लिए यह भी महत्वपूर्ण नहीं
वन रैंक वन पेंशन जिसे कांग्रेस की इंदिरा गाँधी सरकार ने 1973 में रद्द कर सैनिकों के साथ अन्याय किया था उस 42 वर्ष प्राचीन मांग को भाजपा नीत भारत सरकार ने स्वीकार किया व् लागू किया,जिससे 25 लाख पूर्व सैनिक लाभान्वित होंगे व् अर्थव्यवस्था पर 10,000 करोड़ का अतिरिक्त भर पड़ेगा, किन्तु लोगों के लिए यह भी कोई विशेष बात नहीं


पिछली सरकार में जहाँ चीनी सैनिक 1-2 महीने तक भारतीय सीमा में घुसकर टेंट लगाकर बैठ जाते थे इस सरकार के शासन में उन्हें न केवल पीछे धकेल दिया जाता है अपितु उनके बनाये वाच टावर भी नष्ट किये जाते हैं, किन्तु लोगो को उससे कोई मतलब नहीं,

पिछली सरकारों में जहाँ पाकिस्तानी, सेना के जवानों के सर काट के ले जाते थे व् विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री को अजमेर में बिरयानी खिलाते थे, यह सरकार सेना को हर सीजफायर उल्लंघन पर अपनी इच्छे से कार्यवाही करने की वो स्वतंत्रता देती है की पाकिस्तानी सफेद झंडा दिखाकर रहम मांगते दीखते है



युद्ध ग्रस्त यमन में भारतीय सरकार न केवल अपने 4000 नागरिकों को सुरक्षित निकल लाती है बल्कि ब्रिटेन, फ़्रांस,जर्मिनी व् अमेरिका समेत 26 देश भारत सरकार से अपने नागरिकों को निकालने के लिए निवेदन करते हैं व् भारत उन सभी देशों के नागरिकों को भी सुरक्षित निकालता है, किन्तु लोगों को न तो इस सरकार की संवेदनशीलता से मतलब है न पिछली सरकार के असंवेदनशील आचरण से





किन्तु यह बातें न तो हमारा इलेक्ट्रोनिक मिडिया आपको बताएगा न वो "सेक्युलर बुद्धिजीवी", न ही वो "आदर्श लिब्र्ल्स" जो अपने आपको एलीट क्लास कहते फिरते हैं।

Sunday, October 18, 2015

उदारवाद के चोले में छिपे वामपंथ द्वारा आस्था पर प्रहार

आज एक उदारवादी मुस्लिम बन्धु का लिखा एक लेख देखा, जिसमें लिखा था की"एक गुरूजी बच्चों को राम की महिमा पढ़ा रहे थे, अचानक एक बच्चा राम की तुलना गाँधी से कर बैठा,जिसे सुनकर गुरूजी भड़क गए, और गाँधी की तुलना राम से न करने को कहा व् गाँधी कि आलोचना की"जिसमें आगे उन गुरूजी पर कई व्यंग्य व् आलोचनात्मक टिप्पणी की गयी थी,

यह लेख एक कटाक्ष का प्रयास था उन लोगों पर जो गाँधी की नीतियों आचरण व् कृत्यों से असहमत है, विशेषकर उन राष्ट्रवादियों पर जो गांधी को भारत की दुर्दशा के लिए उत्तरदायी मानते आये हैं,  इन मुस्लिम बन्धु ने गाँधी को राम के तुल्य भी बता दिया, व् कई "उदारवादी" उनके मित्र(चाटुकार) उनकी इस पोस्ट की जय जयकार करने लगे.....

आइये अब दोनों के चरित्रों की तुलना कर ही ली जाए
  • आरम्भ चौरीचौरा से करते हैं, जब गांधी के आव्हान पर उनके समर्थन में हजारों बच्चों, युवाओं, व् लोगों ने   अपने स्कूल, कॉलेज व्  नौकरियां छोड़कर आन्दोलन में जुड़ने का निर्णय लिया, किन्तु एक छोटी हिंसा की घटना पर गाँधी ने आन्दोलन वापस ले लिया, ब्रिटिश सरकार ने उन लोगों को दोबारा स्कूल,कॉलेज व् कार्यालय में घुसने नहीं दिया, हजारों लोगों व् उनके साथ उनके परिवारों का जीवन व् भविष्य गांधी के मूर्खतापूर्ण निर्णय की भेंट चढ़ गया, ऐसा कोई उदाहरण राम के चरित्र में नहीं मिलता ।
  • सुभाषचंद्र बोस के प्रति गाँधी का इतना गहरा वैमनस्य था की उन्हें त्रस्त कर कांग्रेस अध्यक्ष के पद से त्यागपत्र देने को बाध्य कर अपनी प्रिय नेहरु के मार्ग को सुगम कर देना, ऐसा भी कोई उदाहरण राम के चरित्र में नहीं दीखता ।
  • नोआखाली में हिन्दुओं का मुस्लिमों के द्वारा नरसंहार किये जाने पर हिन्दुओं को अपने प्राणों के रक्षार्थ प्रतिकार न करने व् सहर्ष मुस्लिमों के हाथों म्रत्यु का वरण करने की सीख देने वाली घटना जिसकी पूरे विश्व में उस समय निंदा हुई थी, जैसा उदाहरण भी राम के जीवन चरित्र में नहीं मिलता, राम ने तो अन्याय सहन न करने व् प्रतिकार करने का सन्देश दिया था ।
  •  नेहरु व् जिन्नाह की महत्वकांक्षा किसी से छिपी नहीं है, किन्तु पूरी कांग्रेस जब राष्ट्र के विभाजन के विरुद्ध थी, तो स्वयं चलती चर्चा के बीच में आकर कांग्रेस से अपने प्रिय नेहरु के लिए राष्ट्र के विभाजन के प्रस्ताव का समर्थन करवाने जैसा अक्षम्य कृत्य भी राम के चरित्र में कहीं नहीं दिखता।
  • गांधी द्वारा नेहरु को कांग्रेस वर्किंग कमेटी के चुनाव में मात्र एक वोट व् सरदार पटेल को १४ वोट मिलने के पश्चात भी, अपने प्रिय नेहरु को प्रधानमन्त्री बनवाने हेतु सरदार पटेल के साथ किया गया घोर अन्याय क्या भला कोई कभी भूल सकता है ? जब गांधी ने सत्य, न्याय व् नैतिकता को ताक पे रखकर सरदार पटेल से नेहरु के लिए कांग्रेस अध्यक्ष का पद त्यागने को कहा था, ऐसा कोई अन्याय आपको राम के चरित्र में तो नहीं दिखेगा ।
  •  विभाजन का आधार धर्म था, जिन्नाह ने आबादी की अदला-बदली का प्रस्ताव रखा था, किन्तु स्वयं को महान दिखाने की होड़ में उस प्रस्ताव को गांधी द्वारा ठुकरा दिया गया, ध्यान देने योग्य ये है कि, मुस्लिमों का आजादी की लड़ाई में जो भी योगदान रहा उसका मूल्य तो उन लोगों ने अपने लिए अलग देश लेकर ब्याज समेत वसूल ही लिया न, फिर अब हिन्दुओं के लिए मिले देश में उनका क्या अधिकार ? जब धर्म आधारित विभाजन हुआ तो मुस्लिमों को इस्लामिक मुल्क पाकिस्तान मिला, किन्तु हिन्दुओं को हिन्दू राष्ट्र क्यों नहीं मिला, आज देश भर में साम्प्रदायिक झगड़े व् हिंसा का बीज गांधी ने ही तो बोया था, इतना अव्यवारिक व् अतार्किक निर्णय राम के चरित्र में कहीं दिखता है क्या ?
  • गाँधी के ऐसे भी कई निर्णय देखे गए जिसमें उन्होंने हिन्दुओं के हितों की बली चढ़ाकर कर अपने को महान दिखाने हेतु हिन्दुओं के हितों का दमन करते हुए अनैतिक रूप से  मुस्लिमों का पक्ष लिया, जैसे विभाजन के बाद आर्थिक संकट से जूझ रहे भारत से पकिस्तान को अपने "सत्याग्रह" के ब्लैकमेल द्वारा बड़ी धनराशी दिलवाना, वो भी तब जब पाकिस्तान से ट्रेनों में भर भरकर हिन्दुओं के शव आ रहे थे, 
  • विभाजन के समय जब भारी बारिश में पाकिस्तान से आये भूखे, निर्धन असहाय बिना आश्रय के हिन्दुओं को जो एक मस्जिद में शरण लिए हुए थे उन्हें मुस्लिमों के विरोध पर उनके छोटे बच्चों समेत बारिश में पुलिस से डंडे मरवाकर गांधी के अपने "सत्याग्रह" द्वारा बाहर निकलवाना भला कौन भूल सकता है,  व् उस समय के पश्चिमी पाकिस्तान को पूर्वी पाकिस्तान से जोड़ने के लिए जिन्नाह द्वारा मांगे गए ५ किलोमीटर चौड़े सडक मार्ग जिसके आस पास हिन्दू न बसते हों, उसके लिए भी गांधी सहमत हो ही गए थे, अब इस प्रकार के उदाहरण राम के चरित्र में तो नहीं मिलते। 
  • यह तो हुई सामाजिक आचरण की बात किन्तु यदि निजी जीवन की बात करें तो कई गांधीवादियों के मस्तक लज्जा से झुके दिखेंगे जैसे अपनी पोती 17 वर्षीय बालिका मनुबेन के साथ गाँधी के ब्रह्मचर्य के प्रयोग, अपनी पुत्री की आयु की रबिन्द्रनाथ टैगोरे की भतीजी पर असक्त होकर विवाह का प्रस्ताव रख देना, कुछ किस्से तो यहाँ तक हैं की विवाहित गाँधी के दक्षिण अफ्रीका के एक पुरुष बौडीबिल्डर हेरमन केलेनबक के साथ गाँधी के अन्तरंग सम्बन्ध थे, अब ऐसे व्यक्ति की तुलना किसी राम जैसे व्यक्तित्व से करना क्या कहा जाय इसका निर्णय पाठक ही करें। 

 आजकल कुछ मुस्लिम बंधु उदारवाद का चोगा ओढ़कर तथ्यों व् साक्ष्यों को छिपाकर व् तोड़ मरोड़कर न केवल लोगों को भ्रमित करते हैं, अपितु अपने वामपंथ की विचारधारा को भी उनके ऊपर थोप देते हैं, और अधिकांश लोग उनकी उदारवाद की छवि से प्रभावित होकर उनका लिखा सब कुछ सत्य मानकर स्वीकार कर लेते हैं, यही हमारे समाज की विडम्बना है की बिना अध्यन किये, इतिहास पढ़े, लोग हर किसी प्रसिद्द व्यक्ति के कथनों पर आँख बंद कर विशवास कर लेते हैं, जिसका दुष्परिणाम न केवल उनको अपितु समाज को भी भुगतना पड़ता है।              

Saturday, October 10, 2015

ISIS अमेरिका, रूस व् तेल

हममे से बहोत से लोग सीरिया में ISIS पर चल रहे रूसी हमलों के विषय में पूर्ण तथ्यों से अनभिज्ञ हैं, तो चलिए आज इसी विषय को समझने का प्रयास करते हैं,

सर्वप्रथम ISIS को समझते है, सद्दाम हुसैन के बाद ईराक में परिस्थितियां
को सम्भालने के लिए अमेरिका ने कुछ बेरोजगार कट्टरपंथी लड़ाकों को हथियार व् धन उपलब्ध कराया, धन व् शक्ति के नाम पर और लोग उनसे जुड़ते गए अब संगठन बढ़ गया व् धन की आवश्यकता भी बढ़ चुकी थी, 
शक्ति व् आधिपत्य की भूख भी बढ़ती जा रही थी अतः नए स्थानों की ओर ध्यान दिया गया व्  लोगों पर अत्याचार कर अपना भय व्याप्त किया गया, महिलाओं व् नशीली दवाओ की  तस्करी आरम्भ की गयी, अमेरिका जो बारीकी से  परिस्थितियां देख रहा था उसने इन लड़ाकों को तेल के कुओं पर कब्जा करने का सुझाव दे डाला जिससे की उसे अब इन लड़ाकों को कम धन देना पड़े, 
जब कुछ तेल के कुओं पर कब्जा हो गया तो इन लोगों ने अंतरराष्ट्रीय दामों से कम पर अमेरिका व् उसके सहयोगियों को तेल बेचना आरम्भ किया, अब इन लड़ाकों की महत्वकांक्षाएं बढ़ चुकी थी और ये अपने लिए एक देश का निर्माण करना चाहते थे जहाँ इनकी सत्ता हो और जो इस्लामिक कानून शरीयत के अनुसार चले,

अतः अब इन लड़ाकों ने कमजोर बशर अल असद के शासन वाले सीरिया की ओर रुख किया जिसके पास बड़े तेल भण्डार थे वही तेल जो सीरिया की आय का प्रमुख स्रोत था,
अब इन लड़ाकों ने सीरिया पर कब्जा करने का व् एक इस्लामिक स्टेट बनाने का स्वप्न देखना आरम्भ किया जिसका अर्थ था अधिक बड़ा राज्य व् कहीं अधिक धन, धीरे-धीरे इन लड़ाकों ने इराक व् सीरिया के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया व् नशीली दवाओं, महिलाओं की तस्करी व् अमेरिका और उसके सहयोगियों को तेल बेचकर अपने को आर्थिक रूप से सुदृढ़ कर लिया, अमेरिका व् ISIS के इस छुपे गठबंधन से अमेरिका,उसके सहयोगियो व् ISIS, तीनों को परस्पर लाभ मिल रहा था, एक पक्ष को धन व् शक्ति व् दुसरे को सस्ता तेल,
किन्तु इसका परिणाम ये हुआ की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की मांग कम हो गयी, क्योंकि बहोत से देशों को अब सस्ता तेल मिल रहा था तो उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय बाजार से तेल खरीदना बहोत कम कर दिया, जब तेल की मांग गिरी तो अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम भी गिर गए।

अब सब कुछ ISIS,अमेरिका व् उसके सहयोगियों के हित में चल रहा था,किंतु ISIS के इस्लामिक कट्टरपंथ व् अत्याचारों ने मिडिया में सुर्खियां बटोरनी आरम्भ कर दी थी, जिससे विश्व की जनता में ISIS की छवि बिगड़ती गयी अब अमेरिका को दिखाने के लिए ही सही परन्तु इनके विरोध में उतारना पड़ा, किन्तु सोने का अंडा व् सस्ता तेल देने वाले को कौन मारता है.....अतः यह विरोध मात्र एक औपचारिकता बनकर रह गया, और सबकुछ पुनः पूर्व के जैसे चलने लगा, नित नई विभीत्स, हिंसक व् पैशाचिक कृत्यों के समाचार सुर्ख़ियों में आते रहे, विश्व को अपनी गम्भीरता प्रदर्शित करने के लिए कभी कभी एक दो ड्रोन भेजकर एक दो मिसाइल लौंच कर वैश्विक महाशक्तियों ने अपने दायित्व की इतिश्री कर ली ।

अब रूस की बात करते हैं, यदि आप समझ रहे हैं की ISIS पर रूस के इन आक्रमण का उद्देश्य मात्र मानवता की रक्षा व् सेवा है तो आप गलत है, रूस भले ही ISIS को समाप्त कर मानवता का भला ही कर रहा हो, किन्तु वो अपना भी हित साध रहा है,
आप पूछेंगे कैसे ? तो आपको बता दें की रूस की आय का मुख्य स्रोत हथियार व् तेल बेचकर आने वाली आय है, किन्तु आजकल रूसी हथियारों की मांग कम होना, अमेरिका द्वारा कई प्रकार के आर्थिक प्रतिबंध लगाने व् तेल के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार में कम होने से व् रूसी मुद्रा के 44% टूटने के फलस्वरूप रूस एक आर्थिक कठिनाई से जूझ रहा हैं व् तब तक जूझता रहेगा जब तक अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में तेल के दाम बढ़ नहीं जाते, 
और उसके लिए ISIS द्वारा चलाये जा रहे तेल के इस ग्रे मार्किट का बन्द होना रूस के लिए अति आवश्यक है,

इसीलिए जब बशर अल असद ने वलादमीर पुतिन को दोनों देशों के पुराने पारस्परिक सम्बंधों का हवाला देते हुए अपना राज्य व् शासन बचाने के लिए सैन्य कार्यवाही का आग्रह किया तो पुतिन तुरन्त तैयार हो गए
क्योंकि एक ओर रूस चेचन मुस्लिम आतंकी जो ISIS के लिए लड़ रहे थे उनसे निपट सकता था, वहीँ तेल का ग्रे मार्केट नष्ट कर अतन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में तेल की कीमत पुनः वहीं लाकर अपने को आर्थिक संकट से उबार सकता था, अमेरिका को दोहरा सबक सिखा सकता था, क्योंकि अमेरिका सुपर पावर है और उसके होते हुए विश्व के सामने ISIS का सफाया कर रूस का नायक के रूप में उभारना, रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने वाले अमेरिका व् उसके सहयोगियों को मिल रहे सस्ते तेल का मार्ग बन्द कर अपना प्रतिशोध भी ले लेना इससे अच्छा अवसर रूस को नहीं मिल सकता था,

अतः रूस ने आक्रमण के पहले दिन ही अपने इरादे स्पष्ट कर दिए थे की वो गम्भीरता से युद्ध लड़ने उतरा है Su 27 व् Su 34 ने ताबड़तोड़ हमले करने आरम्भ किये, आक्रमण की तीक्ष्णता का का अनुमान इसी से लगा लीजिये की 24 घण्टों में लड़ाकू विमानों ने 67 सॉर्टिस को अंजाम दिया व् कैस्पियन सी से भी क्रूज़ मिसाइलों द्वारा ISIS पर  आक्रमण कर उसकी कमर तोड़ दी व् आतंकी लड़ाके भागने लगे, अमेरिका ने अंतर्राष्ट्रीय मिडिया द्वारा रूस के विरुद्ध प्रोपगैंडा चलाने का प्रयास किया किंतु व् निरर्थक ही रहा, उल्टा अब ईराक ने भी रूस को ISIS से लड़ने के लिए अपने देश में आमंत्रित किया है व् रूस को कार्यवाही करने के लिए एक सैन्य बेस व् हवाई अड्डा देने का निर्णय लिया है, जिससे विश्व पटल पर अमेरिका की छवि को गहरा धक्का लगा है वहीं रूस एक सशक्त जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में उभरा है।

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