Thursday, March 27, 2014

आम आदमी पार्टी का बांग्लादेशी घुसपैठियों के प्रति अथाह प्रेम

क्या कभी आम आदमी पार्टी के किसी नेता ने कश्मीरी पंडितों को पुनः उनके घर उनकी भूमि वापस दिलवाने की बात कही है ?

क्या असम में बंगलादेशी मुसलमानों द्वारा विस्थापित किये गए बोडो हिन्दुओं को उनके घर व् भूमि दिलवाने की बात कही है ?

मैंने वह सब तो नहीं सुना किन्तु भारत में वैध रूप से घुस आये बंगलादेशी घुसपैठियों के प्रति आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह के मन में कितनी दया है वह यह वीडियो देखकर आप अनुमान लगा लें की,
उन्हें अपने देश के मूल निवासियों की चिंता नहीं है जिन्हें इन्ही बांग्लादेशियों ने विस्थापित किया है, किन्तु इन्हें चिंता केवल बंगलादेशी मुसलमान घुसपैठियों की है जो भारत के मूल निवासियों के अधिकारों पर कुंडली मार कर बैठे हुए हैं

केजरीवाल के दोहरे मापदंड

कल मोदी ने अरविन्द केजरीवाल पर शाब्दिक बाण चलाये और उन्हें व् उनकी पार्टी को पाकिस्तान का एजेंट कहा, जिसके प्रत्युत्तर में केजरीवाल अपने भगोड़े आचरण पर आ गए और बोले “ऐसी भाषा मोदी को शोभा नहीं देती है”


अब बहोत से बुद्धिजीवी यहाँ तक की राजनितिक पंडित भी केजरीवाल के इस वक्तव्य का समर्थन करते दिखे, जिनको लगता है राजनीती में यह भाषा उचित नहीं, उन्हें मेरा सुझाव है की यथार्थ को स्वीकारना सीखें, यह बातें एक आदर्श समाज में उचित हो सकतीं है, किन्तु यह कोई आदर्श समाज नहीं है, और आपका प्रतिद्वंदी जिस शैली व् भाषा में आपपर आक्रमण कर रहा हो उसे तथ्यपरक उत्तर उसीकी भाषा व् शैली में देने में क्या अनुचित है ?  
कई पत्रकार मोदी को प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार होने के कारण ऐसी भाषा से बचने का सुझाव दे रहे है,   किन्तु क्या मैं जान सकता हूँ की इतने लम्बे समय से केजरीवाल जो मोदी पर निरंतर झूठे अनर्गल आरोप लगाते आ रहे है जिनका न कोई सर होता है न पैर, पहले कहते है गुजरात में ८०० किसानों ने आत्महत्या की, अगले हफ्ते यह आंकड़ा ५८०० बताते है,
कभी मोदी को अम्बानी का दलाल बोलते हैं कभी अदानी का, तो क्या यह भाषा उचित है ?, 
केजरीवाल स्वयं एक मिडिया हॉउस द्वारा प्रायोजित निजी विमान से यात्रा करते है,किन्तु मोदी द्वारा चुनाव प्रचार में हैलिकोप्टर प्रयोग करने पर प्रश्न उठाते है, 
केजरीवाल मीडिया पर मोदी द्वारा खरीदे जाने का आरोप लगाते है, और आजतक व् पुन्य प्रसून बाजपेयी के साथ मीडिया फिक्सिंग का वीडियो केजरीवाल का लीक होता है.....

वैसे मोदी द्वारा अपने ऊपर हुए इस तीखे आक्रमण से बिलबिलाये केजरीवाल मोदी को मुद्दे की बात करने की सीख देते दिखे, लगता है केजरीवाल समझते है की वो जो चाहें आरोप लगायें मोदी को उत्तर नहीं देना चाहिए ? 
वैसे क्या यह सच नहीं की “आम आदमी पार्टी” की वेबसाईट में कश्मीर को पाकिस्तान का भाग दिखाया गया है? 
क्या यह सच नहीं है कि आम आदमी पार्टी के नेता प्रशांत भूषण कश्मीर पाकिस्तान को देने के समर्थक हैं? 
क्या यह सच नहीं है कि आम आदमी पार्टी के प्रोफेसर चेनाय कसाब और अफजल गुरू जैसे आतंकवादियों को निर्दोष बताते हैं और अलगाववादियों को मिल कर भारत के विरोध लड़ने का आव्हान करते है? यही चेनॉय आईएसआई से धन व् सुविधाएं लेकर पाकिस्तान पर कश्मीर के दृष्टिकोण का कई अन्तरराष्ट्री सेमिनारों में समर्थन करते रहे हैं ?
क्या यह भी सच नहीं की पाकिस्तान में "आम आदमी पार्टी" को चंदा व् चुनाव के लिए धन उपलब्ध करवाने का अभियान हफीज सईद द्वारा चलवाया जा रहा है ?

यदि यह सच है तो केजरीवाल व् "आम आदमी पार्टी" को पाकिस्तान का एजेंट बोलना कहा से अनुचित है ?

मित्रों कूटनीति के सबसे बड़े गुरु यदि हुए, तो वो भगवान कृष्ण ही थे, और एक बार शिशुपाल व् कृष्ण का प्रसंग याद करिए, कृष्ण ने शिशुपाल की १०० भूलें क्षमा की थी, परन्तु १०१वीं भूल पर उसका वध किया था, कृष्ण ने महाभारत के युद्ध में यह सन्देश दिया की नैतिकता व् नियमों का पालन उसके साथ करो, जो स्वयं इनका पालन करता रहा हो, अतः जो केजरीवाल स्वयं नैतिकता को कोई महत्व न देता हो, झूठे व् मिथ्या आरोप लगाता फिरता हो, उसके सत्य व् उसके कर्मों को जनता के सामने रखना कौन सी अनुचित बात है ? 
जहाँ तक भाषा की बात है तो केजरीवाल को तो कम कम से कम भाषा की मर्यादा की दुहाई देने का कोई अधिकार नहीं, 
केजरीवाल की भाषा की मर्यादा तब कहाँ थी जब मोदी को मनघडंत व् झूठे आरोप लगाकर पूंजीपतियों व् उद्योगपतियों का दलाल कहा था ? 
और आज जब सामने से उत्तर मिला तो मर्यादा याद आ गयी ? 
ये दोहरा आचरण व् मानक क्यों ? 
मानक तो सबके लिए एक समान ही होने चाहिए    

जब तक केजरीवाल ने घोषणा नहीं की थी की वो मोदी के विरुद्ध चुनाव लड़ेंगे तब तक मोदी ने केजरीवाल पर एक शब्द भी नही कहा था किन्तु जब यह स्पष्ट हो चूका है की केजरीवाल अब मोदी का प्रतिद्वंदी है तो अब उसपर आक्रमण करना मोदी का धर्म बनता है, और मोदी अपने उसी धर्म का पालन कर रहे हैं. 

Friday, March 14, 2014

नैतिकता के साथ राजनितिक परिपक्वता का महत्व

नैतिकता के साथ राजनितिक परिपक्वता कितनी महत्वपूर्ण है इसका ज्वलंत उदाहरण अन्ना हजारे की आज की स्थिति व् उनका आज का दिया हुआ वक्तव्य है,

मुझे भली प्रकार याद है की जब मैंने अन्ना द्वारा ममता बनर्जी का समर्थन करने पर एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था “अन्ना के अनुसार किसी व्यक्ति कीशुचिता के मानक क्या है?”
इसपर कई लोगों ने मेरी आलोचना की थी,
किन्तु आज स्वयं अन्ना ने ही यह सत्यापित कर दिया की मैंने अनुचित प्रश्न नहीं उठाये थे

लोगों को स्वयं विचार करना चाहिए की किसी भी बात में कितना तत्व है, उसके पश्चात् ही उसका समर्थन या विरोध करना चाहिए, जैसे अन्ना कहते हैं पार्टी को न देखें चरित्रशील लोगों को वोट दें, किन्तु क्या अन्ना अनभिग्य है की हर विधायक व् सांसद अपने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की बात मानने को बाध्य होता है ?

अतः यदि व्यक्ति ने किसी उम्मीदवार को अच्छा समझ कर भले ही वोट कर दिया, किन्तु उस उम्मीदवार की पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ही यदि पक्षपाती अथवा आर्थिक या नैतिक रूप से भ्रष्ट है तो वह उम्मीदवार तो वही करेगा न जो नेतृत्व की आज्ञा होगी, वो उम्मीदवार संसद या विधानसभा में किसी बिल का समर्थन अथवा विरोध आपनी पार्टी नेतृत्व की आज्ञा के अनुसार ही तो करेगा, तो फिर क्या इस प्रकार बिना राजनितिक पार्टी पर ध्यान दिए केवल उम्मीदवार को देखकर वोट देने का सुझाव अनुचित नहीं है ? 

जनता के पास कई साधन उपलब्ध हैं हर राजनितिक दल के विषय में जानकारी एकत्र करने के, उन्हें स्वयं जांच लेना चाहिए की उनकी आशा के अनुरूप कौन सा राजनितिक दल खरा है, उसके पश्चात ही वोट देना चाहिए, न की किसी व्यक्ति के कहे अनुसार !       

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